नारी की क्या किस्मत है,
कितनी बेबस वो दिखती है।
कहीं कहीं वो रानी है,
कहीं अधूरी कहानी है।
नारी हमेशा चुप रहती है,
फिर भी कितना सहती है.
दुर्गा रूप है नारी का ,
ईश्वरीय स्वरुप है नारी का।
सरस्वती का रूप है नारी,
ज्ञान का भंडार है नारी ,
अफ़सोस इस युग में,
शिक्षा को तरसती है नारी।
समाज के हर स्तर पर,
अग्रणी है नारी,
फिर भी दहेज़ न लाने पर,
जिन्दा रोज जलती है नारी।
खुद की पहचान छोड़,
नए रिश्तो को अपनाती है नारी,
फिर भी हमेशा मेहमान,
क्यों बनी रहती है नारी।
नारी को पूजा जाता है,
तीज और त्योहारों पर,
उसी नारी को क्यों छेड़ा जाता ,
गली मोहल्ले, चौराहों पर।
नारी है ईश्वर का रूप,
इसका अपमान करने की,
करो न भूल, करो न भूल ।
कितनी बेबस वो दिखती है।
कहीं कहीं वो रानी है,
कहीं अधूरी कहानी है।
नारी हमेशा चुप रहती है,
फिर भी कितना सहती है.
दुर्गा रूप है नारी का ,
ईश्वरीय स्वरुप है नारी का।
सरस्वती का रूप है नारी,
ज्ञान का भंडार है नारी ,
अफ़सोस इस युग में,
शिक्षा को तरसती है नारी।
समाज के हर स्तर पर,
अग्रणी है नारी,
फिर भी दहेज़ न लाने पर,
जिन्दा रोज जलती है नारी।
खुद की पहचान छोड़,
नए रिश्तो को अपनाती है नारी,
फिर भी हमेशा मेहमान,
क्यों बनी रहती है नारी।
नारी को पूजा जाता है,
तीज और त्योहारों पर,
उसी नारी को क्यों छेड़ा जाता ,
गली मोहल्ले, चौराहों पर।
नारी है ईश्वर का रूप,
इसका अपमान करने की,
करो न भूल, करो न भूल ।
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